जालंधर 10 अगस्त (ब्यूरो) : मां बगलामुखी धाम गुलमोहर सिटी नजदीक लम्मा पिंड चौक जालंधर में श्री शनिदेव महाराज जी के निमित्त श्रृंखलाबद्ध सप्ताहिक दिव्य हवन यज्ञ का आयोजन किया गया।
सर्व प्रथम ब्राह्मणों द्वारा मुख्य यजमान विकास से विधिवत वैदिक रीति अनुसार पंचोपचार पूजन षोढषोपचार पूजन नवग्रह पूजन उपरांत सपरिवार हवन-यज्ञ में आहुतियां डलवाई गई।
उपस्थित भक्तजनों से हवन-यज्ञ की पूर्ण आहुति उपरांत अपनी बात कहते हुए सिद्ध मां बगलामुखी धाम के प्रेरक प्रवक्ता नवजीत भारद्वाज जी दिव्य हवन यज्ञ में उपस्थित प्रभु भक्तों को परमात्मा की प्राप्ति के बारे में ब्याख्यान करते हुए कहते है कि हम सबने अपने मन में परमात्मा की कोई न कोई छवि बनाई हुई है। यही छवि किसी पेंटिंग या मूर्ति के रूप में भी सामने आती है। परमात्मा के निराकार, निर्गुण स्वरूप की कल्पना करना हमारे लिए कठिन है, इसलिए हम उसे आंखों से देखने की कोशिश करते हैं। हम भगवान को एक भौतिक या सगुण रूप देने का प्रयास करते हैं।
नवजीत भारद्वाज जी कहते है कि भगवान को देखने का सही तरीका क्या है? साकार या निराकार? भगवद्गीता, अध्याय 11 श्लोक 8 में भगवान कृष्ण कहते हैं, *‘न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्वरम्।’* यानी, तुम इन भौतिक नेत्रों से मेरे ब्रह्मांडीय रूप को नहीं देख सकते, इसलिए मेरे राजसी ऐश्वर्य को निहारने के लिए मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि प्रदान करता हूं। भगवान कृष्ण कहते हैं कि उनकी दिव्यता को देखने के लिए भौतिक आंखें कभी सक्षम नहीं हो पाएंगी। हमें उसे दिव्य दृष्टि से देखने की जरूरत है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यह दिव्य दृष्टि दी। प्रारंभ में अर्जुन भगवान को अपनी धारणाओं के आधार पर देखता है। धीरे-धीरे वह मन में बनाए सभी रूपों को तब तक ईश्वर में विलीन होते देखने लगता है, जब तक कि केवल एक अलौकिक अग्नि ही शेष रह जाती है। हजार सूर्यों की चमक के बराबर यह तेज अर्जुन को चकाचौंध और भौंचक्का कर देता है।
अर्जुन की ही तरह हम इंद्रियों की सीमित धारणाओं से दुनिया को देखते हैं। एक चमगादड़ इंफ्रा-रेड दृष्टि से जो देखता है, वह मानव आंख के लिए असंभव है। इसी तरह ईश्वर को संकीर्ण दृष्टि से देखना उसके वैभव को सीमित करना है। फिर भी सब अपने-अपने चश्मे से ईश्वर को देखते हैं। जैसा धारणाओं का लेंस, वैसे ही दिखते हैं भगवान। परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को देखने के लिए सबसे पहले क्षितिज का विस्तार करना सीखना चाहिए और आंतरिक दृष्टि से दुनिया को देखना चाहिए। ईश्वर को महसूस करने का यह सबसे आसान तरीका है। जीवन को इस दिव्यता से भर लें। केवल शुद्ध भक्ति ही इस दृष्टि को प्राप्त करती है। यदि कभी भी भगवान को देखना चाहते हैं, तो उन्हें भक्ति की दृष्टि से देखें।
विशेष रूप से शामिल होने वालों में श्वेता भारद्वाज,सरोज बाला, पूनम प्रभाकर,सुनीता,गुरवीर, प्रिती ,मंजू, प्रिया , रजनी, सोनीया,नरेश,कोमल , कमलजीत,अमरजीत, राकेश प्रभाकर, समीर कपूर, अमरेंद्र कुमार शर्मा, नवदीप, उदय ,अजीत कुमार , नरेंद्र,रोहित भाटिया, अमरेंद्र सिंह, प्रदीप, सुधीर, सुमीत, बावा ,जोगिंदर , मनीष शर्मा, गुप्ता, अवतार सैनी,गौरी केतन ,सौरभ , नरेश,अजय शर्मा,दीपक , प्रवीण,राजू, सोनू, मोनू,गुलशन ,संजीव ,मुकेश, रजेश ,अमनदीप शर्मा, गुरप्रीत सिंह, विरेंद्र , अमन शर्मा, लक्की, रोहित, विशाल , अश्विनी शर्मा , रवि भल्ला, भोला शर्मा, जगदीश, दीपक, प्रिंस कुमार, पप्पू ठाकुर, बलदेव सिंह भारी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।
हवन-यज्ञ उपरांत विशाल लंगर भंडारे का आयोजन किया गया।