आज पूजा के लिए मिलेगा सिर्फ 43 मिनट का मिलेगा समय : जन्माष्टमी पर जानिए शुभ मुहूर्त, नियम और महत्व

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आज पूजा के लिए मिलेगा सिर्फ 43 मिनट का मिलेगा समय : जन्माष्टमी पर जानिए शुभ मुहूर्त, नियम और महत्व

न्यूज़ नेटवर्क 16 अगस्त (ब्यूरो) : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर देशभर में भक्तिभाव की लहर है। पंचांग भेद के चलते इस वर्ष यह पर्व 15 और 16 अगस्त को दो दिन मनाया जा रहा है। आज स्मार्त संप्रदाय के अनुयायी जन्माष्टमी मना रहे हैं। यह भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव है।

परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी पर अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग विशेष महत्व रखता है। हालाँकि, इस वर्ष यह संयोग नहीं बन रहा है, फिर भी भक्तों में उत्साह की कोई कमी नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे माना जाता है, और इसी समय विशेष पूजा-अर्चना होती है।

पूजा का शुभ मुहूर्त और तिथि

पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त को रात 11:49 बजे से हुई थी, जो 16 अगस्त की रात 9:34 बजे तक रहेगी। ऐसे में आज (16 अगस्त) मात्र 43 मिनट का विशेष पूजा काल है, जिसमें श्रद्धालु कान्हा की पूजा कर सकते हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

हिंदू मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में जब कंस के अत्याचारों से धरती त्रस्त थी, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। श्रीकृष्ण, कंस की बहन देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे। जैसे ही उनका जन्म हुआ, कारागार के द्वार स्वयं खुल गए और वासुदेव उन्हें गोकुल में नंद-यशोदा के पास छोड़ आए।

बचपन से ही श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए अनेक लीलाएं कीं। कंस वध उनकी प्रमुख लीलाओं में गिना जाता है।

व्रत और पूजा का महत्व

जन्माष्टमी पर भक्त उपवास रखकर, झूलनोत्सव, दही हांडी और शृंगार पूजा के माध्यम से बाल गोपाल का स्वागत करते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और श्रीकृष्ण के बालरूप की पूजा करने से आध्यात्मिक शुद्धि, सुख-समृद्धि और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण को हर संकट का निवारण करने वाला देवता माना गया है।

देशभर में धूमधाम

पूरे देश में मंदिरों को भव्य रूप से सजाया गया है। कई जगहों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिताएं, भजन-कीर्तन और शोभा यात्राएं निकाली जा रही हैं। भक्तों ने अपने घरों में भी बाल गोपाल के झूले सजाए हैं और विशेष भोग अर्पित किए जा रहे हैं।

जन्माष्टमी पर गाएं बांके बिहारी की आरती
श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं। कुंजबिहारी तेरी आरती गाऊ।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे। प्यारी बंशी मेरो मन मोहे।
देखि छवि बलिहारी जाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥

चरणों से निकली गंगा प्यारी। जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥

दास अनाथ के नाथ आप हो। दुख सुख जीवन प्यारे साथ हो।
हरि चरणों में शीश नवाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥

श्री हरि दास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो।
देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥

आरती गाऊं प्यारे तुमको रिझाऊं। हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं।
श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊं। श्री बांकेबिहारी तेरी आरती गाऊं॥.

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