जालंधर 12 सितंबर : पितृपक्ष के उपलक्ष में स्थानीय श्री राधा गोविंद मंदिर मंडी रोड में 15 दिवसीय श्रीमद् भागवत पाठ की शुरुआत हुई। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार पितृपक्ष में श्री भागवत जी का पाठ श्री हरिनाम संकीर्तन करने से पित्र लोक से आए हुए पितरों की आत्मा को शांति प्रदान होती है।
यत्कृते दशभिर्वस्त्रैतायां हायनेन ततॣ ।
द्बापरेतश्च मासेन ह्मह्मारात्रेण तत्कलौ।।
तपसो ब्रह्मचर्यस्य जपादेश्च फलऺ द्बिजा:।
प्राप्रोति पुरूषस्तेन कलिस्साघ्विति भाषितम।।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, जो फल सतयुग में 10 वर्ष तपस्या ब्रह्मचर्य और जप आदि करने से मिलता है उसे मनुष्य त्रेता में 1वर्ष द्वापर में एक मास और कलयुग में केवल 1 दिन रात में प्राप्त कर लेता है इस कारण ही मैंने कलयुग को श्रेष्ठ कहा है। जो फल सच में ध्यान पिता में यज्ञ और द्वापर में देवार्चन करने से प्राप्त होता है वही कलयुग में श्री कृष्ण चंद्र का नाम संकीर्तन “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” करने से ही मिल जाता है कलयुग में थोड़े से परिश्रम से ही पुरुष को महान धर्म की प्राप्ति होती है इसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं कलयुग से अति संतुष्ट हूं ।
इस मौके पर रोहिणी नंदन दास प्रभु ने कहा कि जिससे यह संपूर्ण जगत उत्पन्न हुआ है ,जो समय जगत रूप से स्थित है, जिसमें यह स्थित है तथा जिसमें यह लीन हो जाएगा वह परम ब्रह्म ही श्री कृष्ण है। वह भ्रम ही उन श्री कृष्ण का परम धाम परम स्वरूप है, वह पद सब और असद दोनों से विलक्षण हैं तथा उससे अभिन्न हुआ ही यह संपूर्ण चराचर जगत उससे उत्पन्न हुआ है। वही अव्यक्त मूल प्रकृति है वही व्यक्त स्वरूप संसार है उसी में यह संपूर्ण जगत क्लीन होता है तथा उसी के आश्रय स्थित है। यज्ञ आदि क्रियाओं का तथा वही है यज्ञ रूप से उसी का यजन किया जाता है और उस यज्ञ आदि का फलस्वरूप भी वही है तथा यज्ञ के साधन रूप जो सरुवा आदि हैं वह सब भी श्रीहरी से अतिरिक्त और कुछ नहीं है । इसलिए जिस प्रकार आकाश और काल आदि सन्निधिमात्र से ही विश के कारण होते हैं उसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण भी बिना परिणाम के ही विश्व के कारण हैं।
इस मौके पर सदानंद दास, सुखदेव दास, सनातन दास, वृंदावन दास श्रीमती रोजी
अहुजा ,श्रीमती रजनी कालिया, श्रीमती बबीता शर्मा श्री मनोज अग्रवाल आदि अन्य भक्तजन उपस्थित हुए।