नमो ऊं विष्णुपादाय गौर प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्ति प्रमोदाय पुरी गोस्वामी नामिने।।
दिव्य ज्ञान प्रदात्रये च प्रभवे जन्म जन्मनि।
ज्ञान वैराग्य देहाय शास्त्र सिद्धांत -संविदे।।
पतितानां समुद्धरे यदतिवेश धराय वै।
प्रचाराचार कार्य च जागरुकाय सर्वदा ।।
यतोद्धवास्याद् कुमाराय भगवदर्चने रति:।
वैष्णवानां सर्वकृत्ये दक्षता परमा तथा ।।
जालंधर के श्री राधा गोविंद मंदिर मंडी रोड जालंधर के प्रांगण मे नित्यलीला प्रविष्ठ ऊं विष्णपाद परिव्राजकाचार्य त्रिदंडी स्वामी १०८ श्री श्रीमद्भ भक्तिप्रमोद पुरी गोस्वामी महाराज जी की आर्विभाव तिथी पूजा बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाई गई ।
श्रील महाराज जी के आर्विभाव पर प्रकाश डालते हुए रोहिणी नंदन दास प्रभु ने बताया कि श्रील महाराज जी का जन्म १३०५ बगंब्द २३ अश्विन शुक्ला गौर चतुर्थी ८ अक्टूबर सन् १८९८ मैं यशोहर जिला पूर्व बांग्लादेश श्री कपोताक्ष नदी के किनारे गंगारामपुर निवासी पिता श्रीयुत तारिणी चरण चक्रवर्ती एवं माता श्रीमती राम रंगिनी देवी को आश्रय देकर एक उच्चकोटि धनाढ्य और विद्वान ब्राह्मण परिवार में अपने पुत्र के रूप से जन्म ग्रहण किया । आपके माता पिता ने आपका नाम श्री प्रमोद भूषण चक्रवती रखा और आपको प्यार से तिनु नाम से पुकारते थे । आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पश्चिम बंग सरकार के अंतर्गत दक्षिण २४ -परगणा के वारुईपुर उच्च विद्यालय में भर्ती हुए। कॉलेज का अघ्ययन समाप्त होने पर र्पोर्ट कमिश्नर के पद पर नौकरी करने लगे ।
इसी समय श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के शिष्य श्री मणीन्द्र नाथ दत्त जो श्रीमद् भक्ति रतन ठाकुर नाम से समस्त वैष्णव जगद् में सुप्रसिद्ध थे, उनसे आपका का मिलन हुआ । आप सदा ही श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी द्वारा रचित बहुत से ग्रंथों को पाठ करने में दिलचस्पी लेते थे। आपके मन में केवल एक ही चिंता रहती कि कब, किस प्रकार से कहां कैसे महत्वपूर्ण व साधु के दर्शन मिलेंगे।
१ जनवरी सन् १९३७ को प्रात: ५:३० बजे , श्रील प्रभुपाद जी ने अपनी अप्रकट लीला की । उसके बाद श्रीमद् प्रणवानंद ब्रह्मचारी ने 7 वर्ष तक श्री धाम मायापुर योगपीठ मंदिर में पुजारी जाकर सेवा की । शेरपुर पार्क जी के प्रकट काल में आपको सन्यास लेने के लिए दो-तीन बार आयोजन किया, किंतु मठ की विशेष सेवा कार्य में व्यवस्था के कारण नहीं हो पाया । आपने ५१ वर्ष की आयु में ३ मार्च, सन् १९४७ मैं परम पवित्र श्री गुरु पूर्णिमा तिथि पर श्रीधाम नवदीपप्रान्तगर्त समुद्रगढ़ में आपने श्रीश्री गौरगदाधर जू के प्रांगण में श्रीमद्भ भक्ति वैखानस गोस्वामी महाराज जी से त्रिदंड संन्यास ग्रहण लीला की। संन्यास के बाद आप श्रीमद्भ भक्ति प्रमोद पुरी महाराज जी के नाम से समस्त गौडि़य वैष्णव जगत में सुप्रसिद्धि प्राप्त की ।
आपने सन् १९८९ की गौर पूर्णिमा तिथी पर श्री गोपीनाथ गौडि़य मठ की स्थापना की। इस प्रकार आप २२ नवंबर सन् १९९८ को प्रात अखंड श्री हरिनाम संकीर्तन के मघ्य श्रीश्री राधागोविंद- गौर गदाधर- जगन्नाथ देव की निशांत लीला स्मरण करते हुए नित्यलीला में प्रवेश किया ।