जालन्धर 29 नवम्बर (बृजेश शर्मा) : आजादी के बाद ऐसा समय आया था कि पूरे भारत मे इंडस्ट्रीज का नाम आता था तो सबसे पहले जालन्धर शहर का नाम आता था।
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यहां पर रबड़ की अनेकों फैक्टरियां होती थी। लेकिन धीरे धीरे यह कम होती होती नामात्र ही रह गई है। यहां पर बनने वाली चपले पूरे भारत मे सप्लाई होती थी। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे यह कारोबार गिना चुना ही रह गया है।
एक समय ऐसा था कि 60 से 70 प्रतिशत रबड़ की चपले जालन्धर में ही बनती थी
जब भारत आजाद हुआ उसके बाद 1955 से यहां पर रबड़ की फैक्टरियां लगी। यहां पर रबड़ की चपले बनती थी। जो पूरे भारत मे सप्लाई होती थी। उस समय जालन्धर को भारत का मुख्य उद्योगिक नगर कहा जाता था।
यहां पर रबड़ से बने चपले,बूट,टायर बनाये जाते थे। लेकिन सब से ज्यादा रबड़ की कैंची चपले सबसे ज्यादा मशहूर थी। यहां इस कारोबार से जहां कारोबारियों को जितना फायदा होता था। उसके साथ ही हजारो लोगो को कारोबार मिलता था। लेकिन समय के साथ अब इसके कारीगर भी नही रहे। अब तो बहस थोड़े ही ऐसे कारीगर रह गए है।
इसकी मशीनरी आने से भी हुआ बड़ा घाटा
इंडस्ट्री के मालिक राकेश बहल ने बताया कि पहले के समय मे इसको बनाने के लिए कारीगर हाथों से काम करते थे। लेकिन इसके बाद इसकी मशनरी आ गई। जिसे चलते तो कारीगर ही थे। मगर जब यह खराब होती थी ।
तो इसे लेकर दिल्ली जाने पड़ता था। क्योंकि इसको ठीक करने के लिए यहां कोई इंजीनयर नही होता था। इसकज ठीक होने में कई दिन लग जाते थे। जिसके चलते हमारा सारा काम रुक जाता था।