तस्यैव हेतो: प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद् भ्रमतामुपर्यध:।तल्लभ्यते दु:खवदन्यत: सुखं कालेन सर्वत्र गभीररंहसा ।।

पितृपक्ष के उपलक्ष्य में श्री राधा गोविंद मंदिर मंडी रोड हो रहे 15 दिवसीय (10/09/22-25/09/22) निरंतर श्रीमद् भागवत पाठ एवं श्री हरिनाम संकीर्तन चल रहा है । श्रीमद् भागवत पाठ करने से ऐसे दुर्गति प्राप्त प्रेत पुरुषों,/आत्माओं का भी उद्धार हो जाता है ।

इस भागवत कथा कर रहे गौड़ीय मठ आश्रित शिष्य श्री रोहिणी नंदन दास प्रभु ने जीव के रूप का वर्णन करते हुए कहा कि, जीव रूप वस्तु का धर्म क्या है? संपूर्ण जड़ जगत में अन्वेषण करने पर भी जो और कहीं देखा नहीं जाता, किंतु केवल जीव में ही लक्षित होता है, वही जीव का धर्म है। सूक्ष्म रूप से विवेचना करने पर यह स्पष्ट ही स्वीकार करना होगा कि आनंद ही जीवन का धर्म है। यदि सारे जी जड़ जगत को छोड़कर अन्यत्र चले जाएं तो यह जगत नीरानंदमय हो जाएगा ।

जल, अग्नि, वायु, आकाश, और पृथ्वी इनमें कहीं भी आनंद नहीं रहेगा। जीव जगत में आनंद के धाम है।
यह पहले ही निश्चित हो चुका है कि जीव चित -वस्तु है। जीव का चित् शरीर जिस प्रकार जड़ से लिंग और स्थूल शरीर से आच्छादित हो गया है उसी प्रकार उसका आनंद रूप धर्म भी लिंग और स्थूलगत होकर दुख के रूप में पारिणत हुआ है ।

जगद्गुरु श्री सच्चिदानंद भक्ति में ठाकुर जी ने भी कहा है “जिन लोगों का श्रीचैतन्य देव के प्रति दृढ़ विश्वास है और नामाश्रय भक्ति में श्रद्धा है वही कलयुगी भवसागर से पार सकेंगे ।

इसलिए जीव को निरंतर हरि भजन (हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) में निमगन रहना चाहिए ।

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