सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर में मनाई श्री कृष्ण जन्माष्टमी, पढ़े

जी नेटवर्क 26 अगस्त (ब्यूरो) : सर्व धर्म ख्वाजा मंदिर के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. सूफ़ी राज जैन जी और दिव्या जी ने जन्माष्टमी के पावन अवसर पर एक विशेष आयोजन किया। इस अवसर पर मंदिर के दरबार में भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं का भावपूर्ण स्मरण किया गया।

डॉ. सूफ़ी राज जैन जी ने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के उन महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला जो आज भी हमारे जीवन के लिए प्रासंगिक हैं। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण के जीवन की हर घटना में एक गहरी शिक्षा छुपी हुई है, जिसे समझकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। उन्होंने भगवत् गीता के उन उपदेशों पर जोर दिया, जो हमें सत्य, धर्म, और कर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। डॉ. जैन ने सभी भक्तों को संदेश दिया कि हमें अपने जीवन में सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए और उनका पालन पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करना चाहिए।

 

श्री कृष्ण का जीवन एक ऐसा ज्ञान का स्रोत है, जो हमें जीवन के हर पहलू को समझने और उसके मूल तत्वों को अपनाने की प्रेरणा देता है।

लोग कृष्ण को भगवान के रूप में मानते हैं, पर कई लोग उनकी लीलाओं को समझने में चूक जाते हैं। कृष्ण की जो “मक्खन चोर” की छवि है, उसका अपने आप में एक गहरा अर्थ है।

 

मक्खन, जो दूध से बनता है, उस समय एक कीमती वस्तु माना जाता था। लोगों के लिए यह धन और सम्पत्ति के समान था। श्री कृष्ण बचपन में घर-घर जाकर मक्खन चुराते थे। यह एक लीला थी, जिसमें कृष्ण लोगों को यह समझाने का प्रयास कर रहे थे कि मोह-माया (भौतिक जुड़ाव) को समझना और उससे ऊपर उठना चाहिए।

 

मक्खन, जो दूध का सार है, उसे तोड़कर खाना इस बात का प्रतीक था कि इंसान को अपनी जीवन की व्यावहारिक चीजों से ज्यादा, आत्मा की शुद्धि और सही रास्ते पर ध्यान देना चाहिए। कृष्ण इसके माध्यम से मोह से मुक्ति पाने की सीख दे रहे थे। मक्खन को चुराना, उसे तोड़ना, यह सब एक प्रतीक है, जो यह बताता है कि जीवन के सहज और आनंदित रूप से प्रीति रखनी चाहिए, लेकिन सांसारिक चीजों में अटके रहना ठीक नहीं है।

 

मृत्यु सत्य है: जीवन का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है। श्री कृष्ण ने अपने जीवन की शुरुआत से ही इस सत्य का सामना किया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि जीवन में जो भी हो, अंत में मृत्यु सभी को प्राप्त होती है। इसलिए हमें जीवन को इस तरह जीना चाहिए कि हम अपने कर्मों से अपनी आत्मा को उन्नति की ओर ले जा सकें।

मक्खन चोर: कृष्ण का “मक्खन चोर” रूप इस बात का प्रतीक है कि जीवन में अपने मन से मोह और माया को दूर करना चाहिए। मक्खन का प्रत्यक्ष अर्थ धन, संपत्ति और मोह से है, जिसे कृष्ण चुरा कर और तोड़कर इस बात का संदेश देते हैं कि सांसारिक चीजों का बंधन हमें आत्मा की शुद्धि से दूर रखता है।

मुरली मनोहर और बांसुरी का पाठ: कृष्ण को “मुरली मनोहर” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनका बांसुरी बजाना मन को मोहित करने वाला था। बांसुरी एक खोखला साधन है, और तभी मधुर स्वर निकलता है जब कोई उसमें अपनी सांस से फूंक मारता है। यह इस बात का प्रतीक है कि हमारे जीवन में तभी सुंदर स्वर निकल सकता है जब हम अपने गुरु और आत्मा की आज्ञा का पालन करते हुए, अपने कर्मों में पूरी श्रद्धा और मेहनत लगाते हैं।

बांसुरी बजाने में गुरु के मार्गदर्शन का महत्व है। जब तक गुरु की शिक्षा हमारी अंगुलियों के माध्यम से सही तरीके से नहीं चलती, तब तक हम अपने जीवन के स्वर को नहीं पा सकते। गुरु की कृतज्ञता, सम्मान और अन्य गुणों को हमें अपनी आत्मा में अपनाना चाहिए, क्योंकि यही गुण हमें जीवन के सही मार्ग पर ले जाते हैं।

जन्माष्टमी का तत्व: जन्माष्टमी को हम सभी मानते हैं, लेकिन इसके मूल तत्व को समझना जरूरी है। कृष्ण ने अपने जीवन से हमें यह सिखाया कि जीवन को एक खेल की तरह लेना चाहिए, जिसमें हर पाठ, हर अनुभव, एक सीख के रूप में होता है। कृष्ण के जीवन से हमें सीखना चाहिए कि हम अपनी आत्मा को कैसे पवित्र बनाएं, अपने कर्मों को सही दिशा में कैसे ले जाएं, और अपने जीवन को कैसे सुंदर और आनंदमय बनाएं।

श्री कृष्ण ने जीवन को एक सीख के रूप में देखा, और हमें भी इसी दृष्टि से अपने जीवन को जीना चाहिए।

इस पावन अवसर पर, दरबार में उपस्थित सभी भक्तजनों ने भक्ति संगीत का आनंद लिया। भगवान श्रीकृष्ण के भजनों से वातावरण में एक अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ। “हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की” जैसे भजनों ने मंदिर परिसर को मधुर संगीत और भक्ति से भर दिया।

विशेष रूप से, शंकर फ़ैज़ अली जी और अंशुमान जी और पूजा जी ने अपने भावपूर्ण गायन से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी भक्ति भरी प्रस्तुतियों ने भक्तों के मन को श्रीकृष्ण की भक्ति में डुबो दिया और इस जन्माष्टमी के आयोजन को और भी खास बना दिया।

समारोह के अंत में, सभी भक्तजनों ने एक साथ भगवान श्रीकृष्ण की आरती की और उनके चरणों में अपने श्रद्धा और प्रेम का समर्पण किया। दरबार में उपस्थित सभी ने इस आयोजन का भरपूर आनंद लिया और भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य माना।

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